परिचय
पंडित पवन मिश्र (वत्स)
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बचपन का संकल्प
मैं जब छोटा था तो मेरी सोच थी कि आने वाले समय में मैं सनातन धर्म का एक कर्मठ सुयोग्य प्रचारक बनूंगा। इसलिए जब भी मै पढ़ता था तो मुझे पुरानी बात याद आती रहती थी। मैने उसी समय मन मै ठान लिया कि अब मुझे पढ़ना भी है और सनातन धर्म का प्रचार भी करना है। जिससे जो लोग हमारे सनातन धर्म को आदर नहीं देते है मैं उनको धर्म के माध्यम से बतलाना चाहता हूं कि एक सनातन धर्म ही ऐसा धर्म है जो अपना कल्याण ना सोच कर विश्व कल्याण के लिए सोचता है। इसलिए सनातन धर्म को इतनी महानता प्राप्त है, तो मै आप सभी हिन्दुओं भाईयो से विनती और आग्रह करूंगा कि जिस तरह मैं सनातन धर्म का प्रचार कर रहा हूं उसी तरह आप लोग भी कीजिए।
धर्म का आदर
लिखा गया है कि धर्मोरक्षति रक्षितः यानी कि जो मनुष्य धर्म की रक्षा करता हैं उसे धर्म भी रक्षा प्रदान करता है। इसलिए हम लोगो का कर्तव्य बनता है कि दूसरे धर्मों का बिना निरादर किए, अपने धर्म का आदर, प्रचार-प्रसार तथा रक्षा करें। अपनी अगली पीढ़ी को भी इसका आदर करना सीखाना भी हमारा ही कर्तव्य है।
जय श्री राम
परमपूज्यनीय गुरुजी
अचार्य मदन मिश्रा
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सदयं हृदयं यस्य भाषितं सत्यभूषितम्।
कायः परहितो यस्य कलिस्तस्य करोति किम्।।
जिसके हृदय में प्राणिमात्र के प्रति दया के भाव हैं, वाणी प्रिय और सत्य से भूषित है और शरीर परोपकार के लिये समर्पित है फिर उसका कलि कर ही क्या सकता है? उसके लिये सदा ही सत्ययुग है।
– पंडित पवन मिश्र (वत्स)