ब्रह्मा – सृष्टि के सृजन के देव
ब्रह्मा सनातन धर्म के अनुसार सृजन के देव हैं। हिन्दू दर्शनशास्त्रों में ३ प्रमुख देव बताये गये है जिसमें ब्रह्मा सृष्टि के सर्जक, विष्णु पालक और महेश विलय करने वाले देवता हैं। व्यासलिखित पुराणों में ब्रह्मा का वर्णन किया गया है कि उनके चार मुख हैं, जो चार दिशाओं में देखते हैं। ब्रह्मा को स्वयंभू (स्वयं जन्म लेने वाला) और चार वेदों का निर्माता भी कहा जाता है। हिन्दू विश्वास के अनुसार हर वेद ब्रह्मा के एक मुँह से निकला था। भगवती सरस्वती ब्रह्मा जी की पत्नी हैं। ब्रह्मा के छः पुत्र थे- सनकादिक ऋषि,नारद व दक्ष। बहुत से पुराणों में ब्रह्मा की रचनात्मक गतिविधि उनसे बड़े किसी देव की मौजूदगी और शक्ति पर निर्भर करती है।
ब्रह्मा: एक संक्षिप्त परिचय
- ब्रह्मा: सृष्टि के रचयिता
- संबंध: हिन्दू देवता
- निवासस्थान: ब्रह्मलोक
- मंत्र: ॐ ब्रह्मणे नमः ।।
- अस्त्र: देवेया धनुष
- जीवनसाथी: सरस्वती
- बच्चे: सनकादि ऋषि,नारद मुनि और दक्ष प्रजापति
- सवारी: हंस (हन्स का नाम है हन्सकुमार)
हिन्दू दर्शनशास्त्र की परम सत्य की आध्यात्मिक संकल्पना ब्रह्मन् से अलग हैं। ब्रह्मन् लिंगहीन हैं परन्तु ब्रह्मा पुलिंग हैं। प्राचीन ग्रंथों में इनका सम्मान किया जाता है पर इनकी पूजा बहुत कम होती है। भारत और थाईलैण्ड में इन पर समर्पित मंदिर हैं। राजस्थान के पुष्कर का ब्रह्मा मंदिर और बैंकॉक का इरावन मंदिर (अंग्रेज़ी: Erawan Shrine) इसके उदाहरण हैं।
ब्रह्मा पुत्र
ब्रहमा के छः पुत्र हैं।
- सनकादिक ऋषि
- सनक
- सनन्दन
- पुलस्ति
- नारद मुनि और
- दक्ष।
इतिहास [वैदिक साहित्य]
विष्णु और शिव के साथ ब्रह्मा के सबसे पुराने उल्लेखों में से एक पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व में लिखित मैत्रायणी उपनिषद् के पांचवे पाठ में है। ब्रह्मा का उल्लेख पहले कुत्सायना स्तोत्र कहलाए जाने वाले छंद ५.१ में है। फिर छंद ५.२ इसकी व्याख्या करता है। सर्वेश्वरवादी कुत्सायना स्तोत्र कहता है कि हमारी आत्मा ब्रह्मन् है और यह परम सत्य या ईश्वर सभी प्राणियों के भीतर मौजूद है। यह आत्मा का ब्रह्मा और उनकी अन्य अभिव्यक्तियों के साथ इस प्रकार समीकरण करता है: तुम ही ब्रह्मा हो, तुम ही विष्णु हो, तुम ही रूद्र (शिव) हो, तुम ही अग्नि, वरुण, वायु, इंद्र हो, तुम सब हो।
छंद ५.२ में विष्णु और शिव की तुलना गुण की संकल्पना से की गई है। यह कहता है कि ग्रन्थ में वर्णित गुण, मानस और जन्मजात प्रवृत्तियां सभी प्राणियों में होती हैं। मैत्री उपनिषद का यह अध्याय दावा करता है कि ब्रह्माण्ड अंधकार (तमस) से उभरा है। जो पहले आवेग (रजस) के रूप में उभरा था पर बाद में पवित्रता और अच्छाई (सत्त्व) में बदल गया। फिर यह ब्रह्मा की तुलना रजस से इस प्रकार करता है:
फिर उसका वो भाग जो तमस है, हे पवित्र ज्ञान के विद्यार्थियों (ब्रह्मचारी), रूद्र है।
उसका वो भाग जो रजस है, हे पवित्र ज्ञान के विद्यार्थियों, ब्रह्मा है।
उसका वो भाग जो सत्त्व है, हे पवित्र ज्ञान के विद्यार्थियों, विष्णु है।
वास्तव में वो एक था, वो तीन बन गया, आठ, ग्यारह, बारह और असंख्य बन गया।
यह सबके भीतर आ गया, वो सबका अधिपति बन गया।
यही आत्मा है, भीतर और बाहर, हाँ भीतर और बाहर।
मैत्री उपनिषद ५.२: हालांकि मैत्री उपनिषद ब्रह्मा की तुलना हिन्दू धर्म के गुण सिद्धांत के एक तत्व से करता है, पर यह उन्हें त्रिमूर्ति का भाग नहीं बताता है। त्रिमूर्ति का उल्लेख बाद के पुराणिक साहित्य में मिलता है।
ब्रह्माण्ड के आरंभ और अंत के ज्ञान से उनकी रचनात्मक शक्तियां पुनर्जीवित हो गईं। भागवत पुराण कहता है कि इसके बाद उन्होंने प्रकृति और पुरुष: को जोड़ कर चकाचौंध कर देने वाली प्राणियों की विविधता बनाई। भागवत पुराण माया के सृजन को भी ब्रह्मा का काम बताता है। इसका सृजन उन्होंने केवल सृजन करने की खातिर किया। माया से सब कुछ अच्छाई और बुराई, पदार्थ और आध्यात्म, आरंभ और अंत से रंग गया। पुराण समय बनाने वाले देवता के रूप में ब्रह्मा का वर्णन करते हैं। वे मानव समय की ब्रह्मा के समय के साथ तुलना करते हैं। वे कहते हैं कि महाकल्प (जो कि एक बहुत बड़ी ब्रह्मांडीय अवधि है) ब्रह्मा के एक दिन और एक रात के बराबर है।
ब्रह्मा: विभिन्न पुराणों के अनुसार
ब्रह्मा के बारे में विभिन्न पुराणों की कथाएँ विविध और विसंगत हैं। उदाहरण के लिए स्कन्द पुराण में पार्वती को “ब्रह्माण्ड की जननी” कहा गया है। यह ब्रह्मा, देवताओं और तीनों लोकों को बनाने का श्रेय भी पार्वती को देता है। यह कहता है कि पार्वती ने तीनों गुणों (सत्त्व, रजस और तपस) को पदार्थ (प्रकृति) में जोड़ कर ब्रह्माण्ड की रचना की। पौराणिक और तांत्रिक साहित्य ब्रह्मा के रजस गुण वाले देव के वैदिक विचार को आगे बढ़ाता है। यह कहता है कि उनकी पत्नी सरस्वती में सत्त्व (संतुलन, सामंजस्य, अच्छाई, पवित्रता, समग्रता, रचनात्मकता, सकारात्मकता, शांतिपूर्णता, नेकता गुण) है। इस प्रकार वे ब्रह्मा के रजस (उत्साह, सक्रियता, न अच्छाई न बुराई पर कभी-कभी दोनों में से कोई एक, कर्मप्रधानता, व्यक्तिवाद, प्रेरित, गतिशीलता गुण) को अनुपूरण करती हैं।
ब्रह्मा की उत्पत्ति कैसे हुई?
पुराणों के अनुसार, विष्णु की नाभि से निकले कमल में स्वयंभू से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई थी। इन्होंने चारों ओर देखना शुरू कर दिया जिसके कारण उनके चार मुख हो गये। भारत में दर्शनशास्त्रों के अनुसार इन्हें निर्गुण, निराकार और सर्वव्यापी माना जाता है।
ब्रह्मा के कुल कितने पुत्र थे?
ब्रह्मा के कुल 59 पुत्र थे। जो इसप्रकार हैं:
विश्वकर्मा, अधर्म, अलक्ष्मी, पुलस्य, पुलह, अत्रि, क्रतु, अरणि, अंगिरा, रुचि, भृगु, दक्ष, कर्दम, पंचशिखा, वोढु, नारद, मरीचि, अपांतरतमा, वशिष्ट, प्रचेता, हंस, यति तथा मानस पुत्र।
इसके अतिरिक्त 8 वसु, 4 कुमार, 7 मनु, 11 रुद्र भी हैं।
ब्रह्मा का अर्थ क्या है?
भारतीय पुराणों के अनुसार निर्गुण, निराकार और सर्वव्यापी माने जाने वाली चेतन शक्ति को ही ब्रह्म शक्ति कहा गया है।
ब्रह्मा की पत्नी कौन थी?
भगवती सरस्वती ब्रह्मा जी की पत्नी थी।