पंचांग

भारतीय पंचांग का आधार विक्रम संवत है जिसका सम्बंध राजा विक्रमादित्य के शासन काल से है। ये कैलेंडर विक्रमादित्य के शासनकाल में जारी हुआ था। इसी कारण इसे विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है।

तिथिर्वारश्च नक्षत्र योगः करण मेव च ।
एतेषां यत्र विज्ञानं पंचांग तन्निगद्यते ।।

अर्थात : पाँच अंगो के मिलने से बनता है, पंचांग जो ये पाँच अंग इस प्रकार हैं: तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण है। सनातन धर्म में पंचांग का पठन पाठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है, इसलिए भगवान श्रीराम भी पंचांग का श्रवण करते थे ।

पंचांग के लाभ

हर मनुष्य को जीवन में शुभ फलो की प्राप्ति के लिए नित्य पंचांग को देखना और बोल कर पढ़ना चाहिए।

    • हर मनुष्य को जीवन में शुभ फलो की प्राप्ति के लिए प्रतिदिन पंचांग को देखना और बोल कर पढ़ना चाहिए।
    • शास्त्रों के अनुसार तिथि के पठन,पाठन और श्रवण से माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है ।
    • वार के पठन, पाठन और श्रवण से आयु में वृद्धि होती है।
    • नक्षत्र के पठन, पाठन और श्रवण से पापो का नाश होता है।
    • योग के पठन, पाठन और श्रवण से प्रियजनों का प्रेम मिलता है। उनसे वियोग नहीं होता है ।
    • करण के पठन, पाठन और श्रवण से सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है ।
चन्द्रमा की एक कला को एक तिथि माना जाता है जो उन्नीस घंटे से 24 घंटे तक की होती है। अमावस्या के बाद प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियों को शुक्लपक्ष और पूर्णिमा से अमावस्या तक की तिथियों को कृष्ण पक्ष कहते हैं। तिथियाँ इस प्रकार होती है : 1. प्रतिपदा, 2. द्वितीय , 3. तृतीया, 4. चतुर्थी, 5. पँचमी, 6. षष्टी, 7. सप्तमी, 8. अष्टमी, 9. नवमी, 10. दशमी, 11. एकादशी, 12. द्वादशी, 13. त्रियोदशी, 14. चतुर्दशी, 15. पूर्णिमा एवं 30. अमावस्या। मुख्य रूप से तिथियाँ 5 प्रकार की होती है । नन्दा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा। इनके बारे में विस्तार से नीचे दिया गया है।

नन्दा तिथियाँ – दोनों पक्षों की 1 , 6 और 11 तिथि अर्थात प्रतिपदा, षष्ठी व एकादशी तिथियाँ नन्दा तिथि कहलाती हैं । इन तिथियों में अंतिम प्रथम घटी या अंतिम 24 मिनट को छोड़कर सभी मंगल कार्यों को करना शुभ माना जाता है ।
भद्रा तिथियाँ – दोनों पक्षों की 2, 7, और 12 तिथि अर्थात द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी तिथियाँ भद्रा तिथि कहलाती है । इन में कोई भी शुभ, मांगलिक कार्य नहीं किये जाते है लेकिन यह तिथियाँ मुक़दमे, चुनाव , शल्य चिकित्सा सम्बन्धी कार्यो के लिए अच्छी मानी जाती है और व्रत, जाप, पूजा अर्चना एवं दान-पुण्य जैसे धार्मिक कार्यों के लिए यह शुभ मानी गयी हैं ।
जया तिथियाँ – दोनों पक्षों की 3 , 8 और 13 तिथि अर्थात तृतीया, अष्टमी व त्रयोदशी तिथियाँ जया तिथि कहलाती है । यह तिथियाँ विद्या, कला जैसे गायन, वादन नृत्य आदि कलात्मक कार्यों के लिए उत्तम मानी जाती है ।
रिक्ता तिथियाँ – दोनों पक्षों की 4 , 9, और 14 तिथि अर्थात चतुर्थी, नवमी व चतुर्दशी तिथियाँ रिक्त तिथियाँ कहलाती है । तिथियों में कोई भी मांगलिक कार्य, नया व्यापार, गृह प्रवेश, नहीं करने चाहिए परन्तु मेले, तीर्थ यात्राओं आदि के लिए यह ठीक होती हैं ।
पूर्णा तिथियाँ – दोनों पक्षों की 5, 10 , 15 , तिथि अर्थात पंचमी, दशमी और पूर्णिमा और अमावस पूर्णा तिथि कहलाती हैं ।
इनमें अमवस्या को छोड़कर बाकि दिनों में अंतिम 1 घटी या 24 मिनट पूर्व तक सभी प्रकार के लिए मंगलिक कार्यों के लिए ये तिथियाँ शुभ मानी जाती हैं ।

वार

एक सप्ताह में 7 दिन या 7 वार होते है। सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार। इन सभी वारो के अलग अलग देवता और ग्रह होते है जिनका इन वारो पर स्पष्ट रूप से प्रभाव होता है।

नक्षत्र

हमारे आकाश के तारामंडल में अलग अलग रूप में दिखाई देने वाले आकार नक्षत्र कहलाते है । नक्षत्र 27 प्रकार के माने जाते है । ज्योतिषियों में अभिजीत नक्षत्र को 28 वां नक्षत्र माना है । नक्षत्रों को उनके स्वभाव के आधार पर 7 श्रेणियों ध्रुव, चंचल, उग्र, मिश्र, क्षिप्रा, मृदु और तीक्ष्ण में बाँटा गया है । चन्द्रमा इन सभी नक्षत्रो में भृमण करता रहता है ।
नक्षत्रो के नाम: 1.अश्विनी, 2. भरणी, 3. कृत्तिका, 4. रोहिणी, 5. मृगशिरा, 6. आर्द्रा, 7. पुनर्वसु, 8. पुष्य, 9. अश्लेषा, 10. मघा, 11. पूर्वाफाल्गुनी, 12. उत्तराफाल्गुनी, 13. हस्त, 14. चित्रा, 15. स्वाति, 16. विशाखा, 17. अनुराधा, 18. ज्येष्ठा, 19. मूल, 20. पूर्वाषाढा, 21. उत्तराषाढा, 22. श्रवण, 23. धनिष्ठा, 24. शतभिषा, 25. पूर्वाभाद्रपद, 26. उत्तराभाद्रपद और 27. रेवती।

नक्षत्र में तारों की संख्या

अश्विनी: – ३, भरणी – ३, कृतिका – ६, रोहिणी – ५, मृगशिरा – ३, आर्द्रा – १, पुर्नवसु – ४, पुष्य – ३, अश्लेषा – ५, मघा – ५, पुर्वफाल्गुनी – २, उत्तराफाल्गुनी – २, हस्त – ५, चित्रा – १, स्वाती – १, विशाखा – ४, अनुराधा – ४, जेष्ठा – ३, मुल – ११, पूर्वाषाढा – २, उत्तराषाढा – २, अभिजित – ३, श्रवण – ३, धनिष्ठा – ४, शतभिषा -१००, पूर्वाभाद्रपद – २, उत्तराभाद्रपद– २, रेवती – ३२।

नक्षत्र एवं उनके स्वामी

1 अश्विनी, 10 मघा, 19 मूल के स्वामी केतू और इसी प्रकार 2 भरणी, 11 पूर्वाफाल्गुनी, 20 पूर्वाषाढा के स्वामी शुक्र क्रम से होते हैं।

    • अश्विनी 10 मघा 19 मूल के स्वामी -केतू
    • भरणी 11 पूर्वाफाल्गुनी 20 पूर्वाषाढ़ के स्वामी – शुक्र
    • कृतिका 12 उत्तराफाल्गुनी 21 उत्तराषाढा के स्वामी – सूर्य
    • रोहिणी 13 हस्त 22 श्रवण के स्वामी – चंद्र
    • मृगशिरा 14 चित्रा 23 धनिष्ठा के स्वामी- मंगल
    • आर्द्रा 15 स्वाति 24 शतभिषा के स्वामी – राहू
    • पुनर्वसु 16 विशाखा 25 पूर्वाभाद्रपद के स्वामी – गुरु
    • पुष्य 17 अनुराधा 26 उत्तराभाद्रपद के स्वामी – शनि
    • अश्लेषा 18 ज्येष्ठा 27 रेवती के स्वामी- बुध
नक्षत्रों का स्वभाव: नक्षत्रों को उनके स्वभाव के आधार पर 7 श्रेणियों ध्रुव, चंचल, उग्र, मिश्र, क्षिप्रा, मृदु और तीक्ष्ण में बाँटा गया है । नक्षत्रों की शुभाशुभ फल के आधार पर तीन श्रेणी होती हैं । शुभ, मध्यम एवं अशुभ । शुभ फलदायी: 1 ,4 ,8 ,12 ,13 ,14 ,17 ,21 ,22 ,23 ,24 ,26 ,27 ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह 13 नक्षत्र शुभ फलदायी माने जाते हैं । मध्यम फलदायी: 5 , 7 ,10 ,16 ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह चार नक्षत्र मध्यम फल अर्थात थोड़ा फल देते हैं। अशुभ फलदायी: 2 ,3 ,6 ,9 ,11 ,15 ,18 ,19 ,20 ,25 शास्त्रों के अनुसार या दस नक्षत्र अशुभ फल देते हैं अत: इन नक्षत्रों में शुभ कार्यो को करने से बचना चाहिए ।

नक्षत्रों के गुणवाले पेड़-पौधे: ज्योतिषीय शास्त्र में 27 नक्षत्रों के लिए अलग-अलग गुणवाले पेड़-पौधे निर्धारित किये गए है। 27 नक्षत्रो के लिए निर्धारित पेड़-पौधे इस प्रकार हैं। अश्विनी – कुचिला, भरणी – आंवला, कृतिका – गुल्लड़, रोहिणी – जामुन, मृगशिरा – खैर, आर्द्रा – शीशम, पुनर्वसु – बांस, पुष्य – पीपल, अश्लेषा – नागकेसर, मघा – बट, पूर्वाफाल्गुनी – पलास, उत्तराफाल्गुनी – पाकड़, हस्त – रीठा, चित्रा – बेल, स्वाती – अजरुन, विशाखा – कटैया, अनुराधा – भालसरी, जेष्ठा – चीर, मूल – शाल, पूर्वाषाढा – अशोक, उत्तराषाढा – कटहल, श्रवण – अकौन, धनिष्ठा – शमी, शतभिषा – कदम्ब, पूर्वभाद्रपद – आम, उत्तरभाद्रपद – नीम, रेवती – महुआ।

योग

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 27 योग कहे गए है। सूर्य और चन्द्रमा की विशेष दूरियों की स्थितियों से योग बनते है । जब सूर्य और चन्द्रमा की गति में 13º-20′ का अन्तर पड्ता है तो एक योग बनता है। दूरियों के आधार पर बनने वाले योगो के नाम निम्नलिखित है:
1. विष्कुम्भ (Biswakumva), 2. प्रीति (Priti), 3. आयुष्मान(Ayushsman), 4. सौभाग्य (Soubhagya), 5. शोभन (Shobhan), 6. अतिगड (Atigad), 7. सुकर्मा (Sukarma), 8. घृति (Ghruti), 9. शूल (Shula), 10. गंड (Ganda), 11. वृद्धि (Bridhi), 12. ध्रुव (Dhrub), 13. व्याघात (Byaghat), 14. हर्षण (Harshan), 15. वज्र (Bajra), 16. सिद्धि (Sidhhi), 17. व्यतीपात (Biytpat), 18. वरीयान (Bariyan), 19. परिध (paridhi), 20. शिव (Shiba), 21. सिद्ध (Sidhha), 22. साध्य (Sadhya), 23. शुभ (Shuva), 24. शुक्ल (Shukla), 25. ब्रह्म (Brahma), 26. ऎन्द्र (Indra), 27. वैधृति (Baidhruti).

इन 27 योगों में से 9 योगों को अशुभ माना जाता है इसीलिए इनमें सभी प्रकार के शुभ कार्यों से बचने को कहा गया है। ये अशुभ योग हैं: विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतीपात, परिघ और वैधृति।

करण

एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में। कुल 11 करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। इसमें विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।

महीनो के नाम

भारतीय पंचाग के अनुसार हिन्दु कैलेण्डर में 12 माह होते है जिनके नाम आकाशमण्डल के नक्षत्रों में से 12 नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं। जिस मास की पूर्णमासी को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी के नाम पर उस मास का नाम रखा गया है।

    • चित्रा नक्षत्र के नाम पर चैत्र मास (मार्च-अप्रैल)
    • विशाखा नक्षत्र के नाम पर वैशाख मास (अप्रैल-मई)
    • ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर ज्येष्ठ मास (मई-जून)
    • आषाढ़ा नक्षत्र के नाम पर आषाढ़ मास (जून-जुलाई)
    • श्रवण नक्षत्र के नाम पर श्रावण मास (जुलाई-अगस्त)
    • भाद्रपद (भाद्रा) नक्षत्र के नाम पर भाद्रपद मास (अगस्त-सितम्बर)
    • अश्विनी के नाम पर आश्विन मास (सितम्बर-अक्तूबर)
    • कृतिका के नाम पर कार्तिक मास (अक्तूबर-नवम्बर)
    • मृगशीर्ष के नाम पर मार्गशीर्ष (नवम्बर-दिसम्बर)
    • पुष्य के नाम पर पौष (दिसम्बर-जनवरी)
    • मघा के नाम पर माघ (जनवरी-फरवरी)
    • फाल्गुनी नक्षत्र के नाम पर फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च) का नामकरण हुआ है।

ग्रहों के लिए निर्धारित पेड़ -पौधे: सूर्य – अकवन, चन्द्रमा – पलास, मंगल – खैर, बुद्ध – चिरचिरी, गुरु – पीपल, शुक्र – गुलड़, शनि – शमी, राहु – दुर्वा और केतु के लिए कुश है। ग्रह, राशि, नक्षत्र के लिए निर्धारित पेड़ पौधे का प्रयोग करने से अंतश्चेतना में सकारात्मक सोच का संचार होता है।

साम्पातिक काल: यह सूर्य घड़ी का समय होता है तथा हमारी घड़ी से यह 24 घंटों में लगभग 4 मिनट अधिक तेज चलती है। कृष्णमूर्ति पंचांग में प्रातः पांच बजकर तीस मिनट का साम्पातिक काल एवं ग्रहों की दैनिक स्थित होती है। हिंदी पंचांग के पांच अंग होते हैं-तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण। लग्न सारिणी में दिए गये साम्पातिक काल के समय के भाव स्पष्ट लग्न, द्वितीय, तृतीय, दशम, एकादश एवं द्वादश भाव दिए होते हैं। इन भावों में 6 राशियां जोड़ने से इनके सामने वाले भाव (चतुर्थ, पंचम, छठा, सप्तम, अष्टम व नवम स्पष्ट हो जाते हैं।) बाजार में उपलब्ध सारिणी में भाव सायन पद्धति में दिए हैं। सायन में से अयनांश घटाने से निरयन भाव निकल आते हैं। भारत में निरयन पद्धति पर ही ज्योतिष आधारित है।

अयनांश
पृथ्वी अपनी धुरी से कुछ झुकी हुई है। यह झुकाव लगभग 1 (एक ) मिनट प्रति वर्ष बढ़ जाता है। वर्ष 1999 में यह झुकाव 23 डिग्री 45 मिनट था और वर्ष 2014 में केपी अयनांश 23.57.21 है।

भारतीय मानक समय

भारत लगभग 70 अंश देशांतर से 95 अंश देशांतर तक पश्चिम से पूर्व तक फैला हुआ है। भारतीय समय निर्धारण हेतु 82 अंश 30 कला का देशांतर मानक मान लिया है। इस मानक से समस्त भारत की घड़ियां समय दर्शाती हैं, जिसे हम भारतीय मानक समय कहते हैं। विश्व के समस्त देशों के समय उन देशों के मानक पर निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए इंग्लेंड का मानक 0 अंश देशांतर है। भारत के मानक से यह 82 अंश 30 कला कम है। प्रत्येक अंश पर समय के 4 मिनट का अंतर पड़ता है। अतः 82 अंश 30 कला का गुणा 4 मिनट से किया तो आया = 330 मिनट = 5 घंटे 30 मिनट। अतः इंग्लैण्ड का समय भारत के समय से 5 घंटे 30 मिनट कम है, क्योंकि इंग्लैण्ड का मानक भारत से कम है। ढाका का मानक 90 अंश है, जो भारत के मानक से 7 अंश 30 कला अधिक है। 7 अंश 30 कला गुणा 4 मिनट = 30 मिनट। इसलिए ढाका का समय भारत से 30 मिनट अधिक है।
मथुरा का देशांतर 77 अंश 41 कला है, जो भारत के मानक से 4 अंश 49 कला कम है। अतः मथुरा के समय के लिए 4 अंश 49 कला गुणा 4 मिनट = 19 मिनट 16 सेकेण्ड अर्थात मथुरा का समय भारतीय मानक समय (जो हमारी घड़ियां दर्शाती हैं) से 19 मिनट 16 सेकेण्ड कम होता है। इसे हम मथुरा का स्थानीय समय कहते हैं। इसी प्रकार आप अपने शहर का स्थानीय समय निकाल सकते हैं। ज्योतिष में जन्म कुंडली बनाने में जन्म स्थान के स्थानीय समय का ही प्रयोग किया जाता है।

लग्न

किसी निर्धारित समय पर पूर्व दिशा में क्षितिज पर जहां सूर्योदय होता है, वहां जो राशि उदय हो रही होती है, वह राशि लग्न कहलाती है। एक राशि लगभग दो घंटे तक रहती है। चौबीस घंटों में बारह राशियाँ पृथ्वी का एक चक्कर लगा लेती हैं।

    • जिस राशि में सूर्य होता है, सूर्योदय के समय वही राशि उदय हो रही होती है।
    • राहू-केतू सदैव एक दूसरे से विपरीत दिशा अर्थात एक दूसरे से 180 (डिग्री) अंश पर होते हैं?
    • बुध सदैव सूर्य के साथ अथवा सूर्य से एक भाव आगे या पीछे हो सकता है।
    • शुक्र सदैव सूर्य के साथ अथवा सूर्य से दो भाव तक आगे या पीछे हो सकता है।
    • एक राशि 30 अंश की होती है।
    • एक राशि में सवा दो नक्षत्र होते हैं। प्रत्येक नक्षत्र 13 अंश 20 कला का होता है।
    • प्रत्येक नक्षत्र में 4 चरण होते हैं। एक चरण 3 अंश 20 कला का होता है।
    • कुंडली में पहले भाव में जो राशि होती ह, वह राशि उस जातक की लग्न कहलाती है।
    • कुंडली में चंद्र जिस राशि में होता है, वह राशि उस जातक की राशि कहलाती है।
    • अमावस्या के दिन सूर्य-चंद्र एक ही राशि में एक ही भाव में होते हैं।
    • चन्द्र 24 घंटे तक एक ही नक्षत्र में रहता है।
    • सूर्य और चंद्र सदैव सीधी गति से चलते हैं।
    • मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि की गति भी सीधी है, किन्तु कभी-कभी इनमें से कोई ग्रह वक्री हो कर मार्गी हो जाता है।
    • राहू और केतू सदैव उलटी गति से ही चलते हैं।
    • राहू और केतू ठोस ग्रह नहीं हैं। यह चंद्र जहां सूर्य पथ को उत्तर तथा दक्षिण में काटता है, उन बिंदुओं को ही राहू और केतू कहते हैं। इन बिंदुओं का प्रभाव ग्रहों के प्रभाव से अधिक होने के कारण इन्हें भी ग्रह मान लिया है
नक्षत्र कितने होते हैं?

ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार नक्षत्र 27 होते हैं लेकिन एक अभिजीत नक्षत्र को मिलाकर 28 होते हैं जो इस प्रकार हैं 1.अश्विनी, 2. भरणी, 3. कृत्तिका, 4. रोहिणी, 5. मृगशिरा, 6. आर्द्रा, 7. पुनर्वसु, 8. पुष्य, 9. अश्लेषा, 10. मघा, 11. पूर्वाफाल्गुनी, 12. उत्तराफाल्गुनी, 13. हस्त, 14. चित्रा, 15. स्वाति, 16. विशाखा, 17. अनुराधा, 18. ज्येष्ठा, 19. मूल, 20. पूर्वाषाढा, 21. उत्तराषाढा, 22. श्रवण, 23. धनिष्ठा, 24. शतभिषा, 25. पूर्वाभाद्रपद, 26. उत्तराभाद्रपद 27. रेवती और 28 अभिजीत नक्षत्र होते हैं।

ग्रहों के लिए कौन-कौन से पेड़ हैं?

ग्रहों के लिए निर्धारित पेड़ -पौधे: सूर्य – अकवन, चन्द्रमा – पलास, मंगल – खैर, बुद्ध – चिरचिरी, गुरु – पीपल, शुक्र – गुलड़, शनि – शमी, राहु – दुर्वा और केतु के लिए कुश है। ग्रह, राशि, नक्षत्र के लिए निर्धारित पेड़ पौधे का प्रयोग करने से अंतश्चेतना में सकारात्मक सोच का संचार होता है।

नक्षत्रों में तारों की संख्या कितने होते हैं?

नक्षत्र में तारों की संख्या: इस प्रकार है अश्विनी: – ३, भरणी – ३, कृतिका – ६, रोहिणी – ५, मृगशिरा – ३, आर्द्रा – १, पुर्नवसु – ४, पुष्य – ३, अश्लेषा – ५, मघा – ५, पुर्वफाल्गुनी – २, उत्तराफाल्गुनी – २, हस्त – ५, चित्रा – १, स्वाती – १, विशाखा – ४, अनुराधा – ४, जेष्ठा – ३, मुल – ११, पूर्वाषाढा – २, उत्तराषाढा – २, अभिजित – ३, श्रवण – ३, धनिष्ठा – ४, शतभिषा -१००, पूर्वाभाद्रपद – २, उत्तराभाद्रपद– २, रेवती – ३२। होते हैं

भद्रा तिथियां कौन सी होती हैं?

भद्रा तिथियां – कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों की 2, 7, और 12 तिथि अर्थात द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी तिथियाँ भद्रा तिथि होती है । इन में कोई भी शुभ, मांगलिक कार्य नहीं किये जाते है लेकिन यह तिथियाँ मुक़दमे, चुनाव , शल्य चिकित्सा सम्बन्धी कार्यो के लिए अच्छी मानी जाती है और व्रत, जाप, पूजा अर्चना एवं दान-पुण्य जैसे धार्मिक कार्यों के लिए भी यह शुभ मानी जाती हैं ।